ज्यादा पास व झुककर पढ़ने-लिखने से कमजोर होती हैं आंखें, जानें ये खास बातें
आंख संबंधी समस्याएं कॉर्निया के कमजोर होने से होती हैं। मायोपिया में दूर की दृष्टि कमजोर होती है। इसके लिए चश्मा व कॉन्टैक्ट लेंस उपयोगी हैं। आंखों का विकास 18 साल की उम्र तक पूर्ण रूप से हो जाता है। इस दौरान लेंस के प्रयोग की मनाही होती है। जानिए आंखों की समस्या से जुड़ी कुछ खास बातें ।
आंखों में दर्द व सिरदर्द का मुख्य कारण नजर कमजोर होना है। अक्सर बच्चे किताब या कॉपी को झुककर बहुत पास रखकर लिखते या पढ़ते हैं। इससे आंखों पर दबाव पड़ता है। लंबे समय तक ऐसा रहने से धुंधला दिखने लगता है। इसलिए उन्हें ऐसा करने से रोकें। पढ़ाई के दौरान आंखें अंदर की तरफ घूमती हैं जिसे कनवर्जेंस कहते हैं जबकि पढ़ने के लिए जो एफर्ट होता है उसे एकॉमेडेशन कहते हैं। कनवर्जेंस खराब है तो आंखों का घूमने में दिक्कत होने के साथ मसल्स कमजोर होती हैं। जिन्हें चश्मा लगा है और वे नहीं लगाते उन्हें भी सिरदर्द रहता है।
ड्राय आई - कॉर्निया व आंखों में तीन तरल पदार्थ होते हैं जो फिल्म बनाते हैं इसे टियर्स फिल्म कहते हैं। ये फिल्म आंख को मजबूत व सतह को चिकना बनाती है। फिल्म कम होने या आंसू बनना बंद होने से कॉर्निया के आगे की सतह रूखी व धुंधली हो जाती है जो ड्राय आई सिंड्रोम का कारण है। कम्प्यूटर पर काम के दौरान व्यक्ति आंखों को कम झपकाता है जिससे भी आंखें सूखने लगती हैं। पलक झपकने से ही आंखों में आंसू फैलते हैं जिससे रोशनी बेहतर होती है।
लालिमा-जलन -
आंखों में लालिमा और जलन की समस्या प्रदूषण, किसी प्रकार के संक्रमण या सूखेपन से होती है। वहीं आंखों में आंसू पहले टियर्स ग्लैंड में बनते हैं फिर आंखों में आते हैं। लेकिन इन ग्लैंड्स में ब्लॉकेज के कारण दिक्कत बढ़ती है। ऐसे में कुछ जांचों से ब्लॉकेज का पता कर माइनर या मेजर सर्जरी से उसे ठीक किया जाता है।
आंखों में लालिमा और जलन की समस्या प्रदूषण, किसी प्रकार के संक्रमण या सूखेपन से होती है। वहीं आंखों में आंसू पहले टियर्स ग्लैंड में बनते हैं फिर आंखों में आते हैं। लेकिन इन ग्लैंड्स में ब्लॉकेज के कारण दिक्कत बढ़ती है। ऐसे में कुछ जांचों से ब्लॉकेज का पता कर माइनर या मेजर सर्जरी से उसे ठीक किया जाता है।
इसलिए नुकसान -
लंबे समय से दवा चल रही है तो आंखों में ड्रायनेस अधिक रहती है। ऐसी ली जाने वाली दवा को प्रिजर्व करने के लिए केमिकल का इस्तेमाल होना है। ग्लूकोमा, मेनोपॉज और हार्मोनल इंबैलेंस से भी आंखों में रूखेपन की समस्या होती है। डाइट में ओमेगा-थ्री फैटी एसिड खाने की सलाह देते हैं। बढ़ती उम्र में आंसू बनने की क्षमता कम होना भी वजह है।
लंबे समय से दवा चल रही है तो आंखों में ड्रायनेस अधिक रहती है। ऐसी ली जाने वाली दवा को प्रिजर्व करने के लिए केमिकल का इस्तेमाल होना है। ग्लूकोमा, मेनोपॉज और हार्मोनल इंबैलेंस से भी आंखों में रूखेपन की समस्या होती है। डाइट में ओमेगा-थ्री फैटी एसिड खाने की सलाह देते हैं। बढ़ती उम्र में आंसू बनने की क्षमता कम होना भी वजह है।
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इस तरह रहेंगी आंखें सेहतमंद -
भोजन में खासतौर पर विटामिन-ए व सी से युक्त गाजर, टमाटर, करेला, आंवला, चुकंदर, हरी सब्जियां, अनार अधिक खाएं। इनमें आंखों का पर्दा मजबूत करने की क्षमता होती है। बच्चा छोटा है तो उसे नियमित विटामिन-ए की खुराक पिलाएं जिससे भविष्य में उसे रोशनी संबंधी किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े।
भोजन में खासतौर पर विटामिन-ए व सी से युक्त गाजर, टमाटर, करेला, आंवला, चुकंदर, हरी सब्जियां, अनार अधिक खाएं। इनमें आंखों का पर्दा मजबूत करने की क्षमता होती है। बच्चा छोटा है तो उसे नियमित विटामिन-ए की खुराक पिलाएं जिससे भविष्य में उसे रोशनी संबंधी किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े।
दूर का नंबर (-40) तो चश्मा हटना मुश्किल -
च श्मे का नंबर माइनस 40 मायोपिया कहलाता है। इसमें आंख के पीछे का पर्दा कमजोर होने से दिखने में दिक्कत आती है। इसमें चश्मा हटना मुश्किल होता है लेकिन कॉन्टैक्ट लेंस लगाकर चश्मे से निजात पाई जा सकती है।
च श्मे का नंबर माइनस 40 मायोपिया कहलाता है। इसमें आंख के पीछे का पर्दा कमजोर होने से दिखने में दिक्कत आती है। इसमें चश्मा हटना मुश्किल होता है लेकिन कॉन्टैक्ट लेंस लगाकर चश्मे से निजात पाई जा सकती है।