
गर्भावस्था के दौरान व बाद में होने वाला कमरदर्द महिला के लिए प्रसव के दौरान मुश्किल बढ़ाता है। कई बार यह कमरदर्द प्रसव के बाद भी लंबे समय तक रहता है। प्रसव के बाद कोई भी दर्द 6-8 हफ्ते से अधिक रहे तो इसकी अनदेखी न करें, तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
कई हैं दिक्कतें-
महिला को रीढ़ की हड्डी संबंधी लम्बर या पीठ के निचले भाग में दर्द, पेडू दर्द (पेट व आसपास) व सिम्फाइसिस प्यूबिस डिसफंक्शन (कूल्हे की हड्डी में दर्द) परेशानियों से गुजरना पड़ता है।
पेट में दर्द-
पेट के आसपास दर्द की आशंका कमरदर्द के मुकाबले चार गुना ज्यादा होती है। यह पेट में एक तरफ या पीछे रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ निचली ओर होता है। यह दर्द कूल्हे में नीचे की तरफ व जांघों के ऊपरी भाग तक जा सकता है। आराम करने से राहत मिलती है। ज्यादा देर आगे की तरफ झुके रहने से दिक्कत होती है।
पीठदर्द -
यह दर्द आमतौर पर कमर या कूल्हे और पीठ के बीच होता है। हालांकि गर्भावस्था के दौरान पीठ में नीचे होने वाला दर्द वहीं तक सीमित रहता है, लेकिन कुछ मामलों में यह पैरों-पंजों तक आ सकता है। यह स्थिति साइटिका की होती है। गर्भस्थ शिशु के बड़े होने व बच्चेदानी का दबाव पीठ पर पड़ने से यह दर्द होता है।
बरतें सावधानी...
प्रेग्नेंसी के दौरान पीठ व पेटदर्द कम करने में व्यायाम-शारीरिक स्थिति और बैठने-उठने व झुकने की मुद्रा सही होनी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान कमर सीधी करके बैठें।
रोजमर्रा के घरेलू काम या सोने के दौरान सही मुद्रा अपनाएं।
डॉक्टरी सलाह लेकर घर पर सामान्य व्यायाम करें। कुछ महिलाओं को प्रसवपूर्व योगाभ्यास, मालिश आदि से आराम मिलता है। शरीर को आराम दें और धीरे-धीरे अपने काम करें। इससे पीठ और गर्भाशय की मांसपेशियों को मजबूती मिलेगी।
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