ब्लडप्रेसर : ब्लडप्रेसर के कारण, लक्षण, उपचार, जांच और सावधानी - Health Care Tips Hindi
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ब्लडप्रेसर : ब्लडप्रेसर के कारण, लक्षण, उपचार, जांच और सावधानी

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ब्लडप्रेसर : ब्लडप्रेसर के कारण, लक्षण, उपचार, जांच और सावधानी



हाइपरटेंशन को हार्ट अटैक, स्ट्रोक तथा किडनी फेल होने के लिए जिम्मेदार माना जाता है। हाइपरटेंशन ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में वर्षो तक पता नहीं चल पाता है। जब पता चलता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। इसलिए इसे साइलेंट किलर भी माना जाता है। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है हर महीने अपने ब्लड प्रेशर की जांच करवाते रहें।


क्या होता हैं?
ब्लड प्रेशर दो बातों पर निर्भर करता है - हृदय पपिंग फोर्और धमनियों का व्यास, जिसके जरिये शरीर में रक्त संचार होता है। जिसकी ताकत से हृदय रक्त पंप करता है, ब्लड प्रेशर उतना ही ज्यादा होता है। यूं तो यह बात बड़ी सामान्य लगती है, लेकिन गहराई में जाने पर इसके खतरों का पता चलता है।

दरअसल, रक्त संचार एक बहुत ही जटिल कार्य-प्रणाली है, जिसमें नर्वसिस्टम, हारमोंऔर किडनी की अहम भूमिका होती है। ब्लड प्रेशर बढ़ने पर इसका प्रभाव इन अंगों पर पड़ता है।

सभी सिस्टम सामान्य रहने पर मनुष्य स्वस्थ रहता है। इसलिए ब्लड पर प्रेशर पर नज़र रखने की आवश्यकता होती है।

हाइपरटेंशन से संतुलन गड़बड़
किसी भी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर के रूप में जाना जाता है। सामान्यतः ब्लड प्रेशर 120/80 एमएम एचजी को सामान्य माना जाता है। यदि ब्लड प्रेशर इससे अधिक हो तो इसे हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर माना जाता है।

  हाइपरटेंशन से ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। 95 प्रतिशत मामलों में असंतुलन की स्थिति का पता नहीं चल पाता है। इसे डाॅक्टरी भाषा में ‘इंसेंशल हायपरटेंशन’ कहा जाता है। जब लक्षण के द्वारा हायपरटेंशन के बारे में पता चल जाए तो इसे ‘सेकंडरी हायपरटेंशन’ कहते हैं।



सिस्टोलिक व डायस्टोलिक
जैसे 120/80 सिस्टोलिक अर्थात ऊपर की संख्या धमनियों में दाब को दर्शाती है। इसमें हृदय की मांपेशियां सकुंचित होकर  धमनियों में रक्त को पंप करती है।

डायस्टोलिक अर्थात नीचे वाली संख्या धमनियों में उडाब को दर्शाती है जब संकुचन के बाद हृदय की मांसपेशियां शिथिल हो जाती है। ब्लड प्रेशर उवक्त अधिक होता है जब हृदय रक्त को धमनियों में पंप करता हैं।

एक स्वस्थ व्यक्ति का सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 90 और 120 मिलीमीटर के बीच होता है। डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर 60 से 80 मिली मिली मीटर के बीच होता है।

ब्लड प्रेशर के प्रकार
ब्लड प्रेशर संबंधी दो प्रकार की समस्याएं देखने को आती है। एक लो ब्लड प्रेशर और दूसरी हाई ब्लड प्रेशर।

ब्लड प्रेशर सामान्य दैनिक क्रियाएं जैसे उठना, बैठना, दौड़ना, खाना, सोना आदि एवं उम्र से प्रभावित होता है।

जब ब्लड प्रेशर उम्र के मान से निर्धारित मापदंडों से अधिक हो जाएं तो इसे हाई ब्लड प्रेशर $ ($ हाइपरटेंशन) कहते है। कम हो जानेपर लो ब्लड प्रेशर - (- हाइपोरटेंशन) कहते है।






लो ब्लड प्रेशर
लो ब्लड प्रेशर वह दाब है जिससे धमनियों और नसों मंे रक्त का प्रवाह कम होने के लक्षण या संकेत दिखाई देते है। जब रक्त प्रवाह कम होता है तो मस्तिष्क, हृदय तथा गुर्दे जैसे महत्वपूर्ण अंगों में आॅक्सीजन और पौष्टिक तत्व ठीक से नहीं पहुंच पाते है। इससे अंग सामान्य कामकाज नहीं कर पाते हैं। इससे इनके स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है।

चक्कर आना
ब्लड प्रेशर 90/50 होता है तो लो ब्लड प्रेशर को कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ते है। लो ब्लड प्रेशर के कारण चक्कर आना, मितली आना, खड़े होनेपर बेहोश होकर गिर जाना जैसे लक्षण होते है। लो ब्लड प्रेशर होने पर व्यक्ति जल्दी ही काबू पा लेता है।

लेकिन जब पर्याप्त रक्तचाप के कारण चक्रीय धमनी में रक्त की आपूर्ति नहीं होती है तो व्यक्ति के सीने में दर्द हो सकता है या दिल का दौरा पड़ सकता है। गुर्दो को पर्याप्त मात्रा मंे खून की आपूर्ति न होने पर गुर्दे शरीर से यूरिया और क्रिएटिनिन जैसे जहरीले तत्व को निकाल नहीं पाते है। जिससे रक्त मंे इन तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए लो ब्लड प्रेशर की समस्या के प्रति भी गंभीर रहना चाहिए।



उत्पन्न होने के कारण
 शरीर में पानी  नमक की कमी
 मानसिक आघात हृदयघात
 किसी दवा या ज़हर का रिएक्शन आदि।


हाई ब्लड प्रेशर
जब रक्तचाप 130/80 से ऊपर हो तो उसे हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशनकहते है। इसका अर्थ है धमनियों मंे उच्च तनाव है। सामान्यतः रक्तचाप 120/80 के बीच है तो इसे प्री हाइपरटेंशन कहलाता है।

140/89 या उससे अधिक का रक्तचाप हाई ब्लड प्रेशर समझा जाता है। हाई ब्लड प्रेशर से हृदयरोग, गुर्दे की बीमारी, धमनियों का सख्त हो जाना, आंखें खराब हो जाना और मस्तिष्क खराब होने का जोखिम बढ़ जाता है।

प्राइमरी एण्ड सेकण्डरी
जब ब्लड प्रेशर बढ़ने के पीछे कोई कारण या बीमारी नहीं हो तो इसे इसेन्शियल या प्रायमरी हाइपरटेंशन कहते हैं। प्राइमरी हाइपरटेंशन बहुधा 40 की उम्र के बाद होती है। धमनियों की दीवारों की संकुचनशीलता कम होने की वज़ह से होती है।
जब कोई गुर्दे की बीमारियां (ग्लोमेरूलो नेफ्राइटिस, एक्यूट एवं क्रोनिक रीनल फेल्युअर, पाएलो नेफ्राइटिस, पाॅली सिस्टिक किडनी आदि)
हरमोन संबंधी तकलीफें (मधुमेह, थाॅयराइड की कमी या अधिकता, एडरिनल ग्लैंड का ट्यूमर, स्टीराॅइड हारमोन के निर्माण मंे रूकावट या बढ़ जाना आदि।)
रक्त में कैल्शियम का बढ़ जाना, मानसिक रोग, हृदय रोग, मस्तिष्क की चोट आदि से ब्लड प्रेशर का बढ़ जाना सेकंडरी हारपरटेंशन के लक्षण है।


नियंत्रण जरूरी
हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखना जरूरी है। इससे सभी अंग सलामत रहते है। हाई ब्लड प्रेशर धीमे जहर की तरह काम करता है।
इसके कारण धीरे-धीरे सभी अंग खराब होते रहते हंै। हाई ब्लड प्रेशर वाले मरीजों की विशेष देखभाल और जांच द्वारा दिल के दौरे की आशंका कम हो सकती है। वहीं मानसिक आघात की संभावना 40 प्रतिशत कम हो सकती है।


ब्लड प्रेशर जांच कराने के पहले
डाॅक्टर के पाब्लड प्रेशर की जांच के लिए पहुंचने के तुरंद बाद जांच न करवाएं। इसके लिए कम से कम दमिनट तक आराम कर लें इसके बाद ही ब्लड प्रेशर की जांच करवाएं।
लंबी दूरी तक चलने, सीढ़िया चढ़ने, दौड़ने, भागने के तुरंत बाद जांच कराने पर रक्तचाप बढ़ा हुआ आता है।
लंबी यात्रा, राम को जागरण के बाद भी ब्लड प्रेशर की जांच नहीं करवाना चाहिए।
जांच के आधा घंटे पहले चाय, काॅफी, कोक, डिंªक, धूम्रपान आदि न लें। इससे ब्लड प्रेशर की सही जानकारी नहीं मिलती है।


लक्षण
चक्कर आना।
लगातार सिर दर्द होना।
 सिर के पिछले हिस्से मंे दर्द
सांलेने में तकलीफ होना।
नींद न आना।
कम मेहनत करने पर भी सांफूलना।
नाक से खून आना।




कारण


 चिंता, क्रोध, ईष्र्या, भय, मानसिक विकार आदि।
 तेल मसाले की चीजे़ अधिक खाना।
 आवश्यकता से अधिक खाना।
 अनियमित खानपान।
धूम्रपान।
शराब।
शारीरिक श्रम न करना।
पेट में अल्सर होना।
अंतः स्त्रावी गं्रथियों में गठान।
हार्माेन की गड़बड़ी।
मोटापा।
व्यायाम न करना।
कोलेस्ट्रोल का बढ़ना।
रक्त का गाढ़ा होना।
हृदय में कोई विकार होना।
रक्त वाहिनियों का संकरा या खराब हो जाना।
धमनियों में खराबी आना।
दिल का ठीक से रक्त पम्प न करना।
गुर्दे द्वारा खून साफ न कर पाना।
डायबिटीज की शिकायत होना।
नमक का अधिक सेवन करना।
शराब का अधिक इस्तेमाल करना।
दवाएं जैसे गर्भनिरोधक गोलियां, स्टाराॅयड, अवसाद की गोलियों का सेवन करना।




अन्य कारण


वंशानुगत                           
पर्यावरण
चिंता                                 
तनाव
गर्भावस्था जो डिलेवरी के बाद ठीक हो जाती है।
मोटापा की वजह से भी इसकी शिकायत हो सकती है।





सावधानियां


तला हुआ खाना, घी आदि कम से कम खाएं।
वजन नियंत्रित रखें।
खानपान और दिनचर्या नियंत्रित रखें।
एक्सरसाइज करें।
शराब का सेवन न करें।
धूम्रपान न करें।
छोटी-छोटी चीज़ों को लेकर तनाव न पालें।
हमेशा खुश रहें।
तनाव से दूर करने के लिए योगा करें।
नमक कम से कम खाएं।
दिन भर में 10-15 गिलापानी पीएं।




दिल की बीमारी की शुरूआत


हाई ब्लड प्रेशर को दिल की बीमारी की शुरूआत कहा जा सकता है। यहीं से दिल की बीमारी की शुरूआत होती है। हाई ब्लड प्रेशर शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित करता है और कई प्रकार के जटिलताओं को उत्पन्न करता है।



                मस्तिष्क                                              -              आघात व रक्तस्त्राव

                हृदय                                       -              हार्ट अटैक व हार्ट फेलियर

                आंखें                                      -              अंधापन

                गुर्दे                                          -              किडनी फेल होना





पता कैसे लगाएं
ब्लड प्रेशर कापता लगाने के लिए नियमित ब्लड प्रेशर की जांच करवाएं।
हाई ब्लड प्रेशर होने पर डाॅक्टर कुछ अन्य जांच के लिए भी कहते है जिससे ब्लड प्रेशर उत्पन्न होने वाले कारण का पता लगायाजा सकें।
ब्लड टेस्ट (हैलोग्राम, रीनल फंक्शन टेस्ट, इलेक्ट्रग्राम)।
यूरिन टेस्ट।
अल्ट्रासाउंड (पेट, गुर्दे)।
ईको काडिर्योग्राफी (ईसीजी)।
कन्ट्रोल कैसे करें
लाइफ स्टाइल में बदलाव




औषधी उपचार


लाइफ स्टाइल में बदलाव
वजन अधिक होने पर
वजन कम करें।
 नमक पर कंट्रोल करें।
 शराब का सेवन न करंे।
 तनाव न पालें।
 गुस्सा न करें।




औषधी उपचार :- डाॅक्टर की सलाह पर उचित दवा का इस्तेमाल करें।



गर्भवस्था में हाइपरटेंशन


 गर्भवस्था में हाइपरटेंशन के कारण मां और शिशु पर गंभीर घातक दुष्परिणाम हो सकते हंै। अतः हर गर्भवति महिला को नियमित अंतराल पर ब्लड प्रेशर की माप करवाते रहना चाहिए। जिससे हाई ब्लड प्रेशर होने पर परहेज व उपचार द्वारा इसके गंभीर व घातक प्रभावों से बचाव हो सकंे।



प्री एक्लेपसिया


ब्लड प्रेशर के साथ शरीर मेें सूजन और बाद मंे मूत्र में प्रोटीन आने लगे तो यह प्री एक्लेपसिया कहलाती है। इसमें गर्भावस्था, प्रसव के बाद तथा गर्भस्थ शिशु पर गंभीर प्रभाव हो सकते है।



टान्सीमिया आॅफ प्रिगनेन्सी


गर्भावस्था में झटके आना, बेहोश हो जाना, ऐसी स्थिति को टान्सीमिया आॅफ प्रिगनेन्सी कहा जाता है। यह एक गंभीर समस्या है। इसके लिए तत्काल उपाय करने की आवश्यकता होती है। मां और शिशु दोनों का जीवन खतरे में पड़ सकता है।

गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर



उत्पन्न होने के कारण


गर्भवति की उम्र 18 से कम या 35 से अधिक होना।
धमनियां संकुचित होना।
आर. एच. ब्लड ग्रूप में असमानता।
किडनी की समस्या होना।
पूर्व में भी ऐसी शिकायत होना।




गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर के कारण


पी. आई. ए. ग्रसित होने पर रक्त वाहनियां सिकुड़ जाती है जिससे शरीर के अनेक अंग क्षतिग्रस्त हो  सकते है।
सिरदर्द, आंखों के सामने अंधेरा छाना, आंखें कमजोर होना, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, पेशाब कम मात्रा में होना, फेफड़ों में सूजन, श्वाफूलना, गुर्दे और लीवर खराब होने की संभावना रहती है।
ब्लड में प्लेटलेट (हेल्थ सिन्ड्रोम) की कमी से गर्भस्थ शिशु का जन्म लेना।
डिलेवरी के समय मां को झटके, अधिक रक्तस्त्राव, शाॅक आना। मां और शिशु की मौत हो सकती है।
मस्तिष्क में सूजन, फालिपड़ना।




उपचार


रक्तचाप कम करने की दवाओं का सेवन करें।
अल्ट्रासाउंड तथा फिटोप्रोटीन जांच द्वारा शिशु के स्वास्थ्य, विकलांगता की जानकारी लेना।
प्रतिदिन वजन नापना।
दूसरे दिन पेशाब की जांच करना।
हर चार घंटे में ब्लड प्रेशर की जांच करना।
अधिक से अधिक आराम करना।
खतरे का संकेत होने पर सिजेरियन डिलेवरी की आवश्यकता पड़ सकती है।
झटके आने पर तुरंत अस्पताल में दाखिल करवाएं।




बचाव के उपाय


गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या उत्पन्न न हो इबारे मंे सचेत रहे।
नियमित अंतराल मंे ब्लड प्रेशर की जांच करवाएं।
वजन अधिक बढ़ने न दें। वजन बढने पर ध्यान दें।
किसी प्रकार की शारीरिक परिवर्तन दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं।
ब्लड प्रेशर की शिकायत पहले से होने पर विशेष ध्यान दें। किसी भी प्रकार की समस्या दिखाई देने पर डाॅक्टर के सानिध्य में रहकर डिलेवरी करवाएं।




ब्लड प्रेशर कन्ट्रोल करने के उपाय
           

यदि अपने दिनचर्या और खानपान पर ध्याान दिया जाए तो ब्लड प्रेशर को रोका जा सकता है।



वजन संतुलित रखें             


वजन को बढ़ने से रोक सकते हैं तो अपना ब्लड प्रेशर काफी हद तक रोक सकते हैं। घटाया गया वजन हायपरटेंशन को बिना दवा के कंट्रोल किया जा सकता है।



ध्रूम्रपान न करें


धूम्रपान ब्लड प्रेशर को बढ़ाती है। यदि आप धूम्रपान करना छोड़ देे है। तो कुछ दिनों में बलड प्रेशर काफी हद तक कंट्रोल में आ जाता है।



तनाव पर कंट्रोल करें


 तनाव से काफी ब्लड प्रेश्र की समस्या उत्पन्न होती है। यदि तनाव पर काबू पा लेते हैं तो ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल पाया जा सकता है।



नियमित व्यायाम करें


हायपरटेंशन को दूर करने में व्यायाम बहुत सहायक होता है। व्यायाम से वजन कम होता साथ ही ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है।  सुबह टहलने से भी बलड प्रेशर में कमी आती है। यदि आप कोई व्यायाम शुरू करने जा रहे हैं। और आपको ब्लड प्रेशर की शिकायत है तो डाक्टर से जरूर लाह ले लें।



आहार पर ध्यान दें


अच्छे खनिज के स्त्रोत वाले खाद्यय पदार्थ को अपने आहार में शामिल करें। पोटेशियम और मैग्नेशियम तत्व से भरपूर टमाटर, हरी सब्जियां, गाजर, सोयाबीन, सनफ्लावर आॅयल, आलू, मटर, अंगूर, पालक, कद्दू आदि शामिल करें। इसके अलावा कैल्शियम युक्त पदार्थ दूध, चना, राजमा आदि को शामिल करें। इससे ब्लड प्रेशर जल्दी कंट्रोल में आ जाता है।



नमक का सेवन कम करें


 नमक हाई ब्लड प्रेशर के जिम्मेदार माना जाता है। इसलिए इसका इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए। शरीर को जितने मात्रा में नमक की जरूरत होती है। वह सब्जी, फल और पानी से मिल जाती है। इसलिए इबात से घबराना नहीं चाहिए कि नमक कम लेने से शरीर में इसकी मात्रा कम हो जाएगी।

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